भाई दूज का उपहार #लेखनी कहानी प्रतियोगिता -03-Dec-2021
भाई दूज का उपहार
बलराज बलराज... ओ बल्लू बेटा कहाँ गया जल्दी आ।
उसकी मम्मी दयमंती ने अपने गेट पर खड़े होकर बलराज को पुकारा जो गली में अपने दोस्तों के साथ बात कर रहा था। दौड़ते हुए दयमंती के पास आया।
क्या हुआ मम्मी...
दयमंती बोली.. देख बलराज फिर से लाइट चली गई जा जल्दी से दौड़कर मोमबत्ती ले आ और कमला आंटी की दुकान पर भी देख लेना लक्ष्मी गणेश की फोटो तैयार हो गई होगी तो ले आना।
दयमंती उसे पैसे देते हुए कहती है.. और हाँ जाते वक्त देख लेना काव्या कहां है ।
देखना वही होगी रामलीला ग्राउंड में खेल रही। इस लड़की को कितनी बार समझा समझा कर थक गई हूँ कि अंधेरा होने से पहले घर आ जाया कर। पर मेरी बात मानती कहाँ है।आज तेरे पापा को करती हूँ इसकी शिकायत। स्कूल से आते ही बस्ता पटक खेलने भाग जाती है, ना खाने पीने का होश है ना पढ़ने लिखने का। तूं उसे घर भेज देना ।
बलराज ने अपनी साइकिल निकाली और जल्दी से रामलीला मैदान की तरफ गया। वहां से आवाज
लगाई ..काव्या काव्या..
काव्या की सहेली सोडा ने कोहनी मारते हुए उसे कहा देख तेरा भाई बुला रहा है।
काव्या दौड़ती हुई गई। बलराज की साईकिल पकड कर बोली क्या हुआ भईया।
बलराज बोला...
जल्दी घर जा मम्मी डांट रही है आज तेरी पिटाई होगी। अंधेरा हो गया है और तूं अभी तक यहीं खेल रही है। तूं क्यों नहीं अंधेरा होने से पहले घर चली जाती है। देख तेरे कारण मुझे भी डांट पड़ी।
काव्या बोली भईया प्लीज़ आज बचा लो कल शाम से पहले घर चली जाऊंगी।
काव्या का भाई उससे बहुत प्यार करता था उसकी छोटी बहन जो थी। भाई की सब बातें मानती जैसा वह कहता वैसा ही करती। बलराज बोला अच्छा चल मेरे साथ पहले दुकान से सामान ले आते हैं।
काव्या.. भाई अब कल से पक्का यहां पर शाम को नहीं आऊंगी मैं खेलूंगी भी नहीं। आपका सारा काम भी कर
दूंगी ।
बलराज ने अपनी साईकिल के आगे वाले डंडे पर एक छोटी सी गद्दी जो उसने अपनी छोटी बहन काव्या के लिए ही लगवाई थी और हैंडल पर एक बास्केट।
काव्या को गद्दी पर बैठाकर वो साइकिल चलाने लगा।
साइकिल पर बैठकर काव्या को बड़ा मजा आता। उसका भाई बहुत अच्छा साईकिल चलाता भी था और साथ में कहानियां, अपनी बहादुरी के किस्से भी खूब सुनाता। काव्या बोली भईया भाईदूज आने वाला है ना दिवाली के बाद। आप मेरे लिए इस भाईदूज पर एक छोटी वाली साईकिल जैसी सोडा के पास है खरीद दोगे। वो मुझे बहुत चिढा़ती है अपनी साईकिल दिखाकर छूने भी नहीं देती मुझको।
बलराज बोला... हाँ मेरी गुड़िया पाॅकेटमनी के पैसे बचा रहा हूँ तेरी साईकिल के लिए।
दोनों भाई बहन मोमबत्ती और भगवान की सफेद मिट्टी से बनी फोटो जो मम्मी ने मंगवाई थी और काव्या के लिए ढेर सारी मछली आकार वाली टाॅफी जो उसको बहुत पसंद थी, सारा सामान खरीद कर बलराज ने साईकिल के बास्केट में रखा और दोनों वापस घर के लिए निकल पड़े।
रास्ते में गाना गाते गुनगुनाते....
फूलों का तारों का सबका कहना है
एक हजारों में मेरी बहना है
काव्या को यह गाना बहुत पसंद था वह लगातार अपना पैर हिला रही थी और भाई के साथ साथ गा रही थी।
बलराज ने कितना मना किया सीधा बैठ मैं साइकिल ठीक नहीं चला पा रहा हूं तेरे पैर हिलाने के कारण।
तभी अचानक रास्ते में बड़े से एक पत्थर से बलराज की साइकिल में झटका लगा और काव्या का झूलता हुआ पैर साइकिल के पहिए में फस गया।
वह दर्द से चीखने लगी भाई ने तुरंत साइकिल रोकी और बड़ी मुश्किल से साइकिल टेढ़ा करके काव्या को गद्दी से उतारा। काव्या का पैर बुरी तरह से साईकिल के आगे वाले पहिये में फंसा हुआ था।
गली में पूरा अंधेरा था पूरी कॉलोनी की लाइट गुल थी ।जैसे तैसे करके बड़ी मुश्किल से बलराज ने उसके पैर को पहिये से निकाला और अपनी साइकिल वहीं छोड़ उसे गोदी में लेकर डॉक्टर के पास भागा। काव्या का पैर खून से लथपथ हो गया था जिससे बलराज की सफेद कमीज भी लाल हो गई।
यहां घर पर दयमंती को भी बहुत चिंता हो रही थी। बलराज के पापा भी ऑफिस से नहीं आए थे तब तक।दयमंती ने पहले भगवान के मंदिर के पास दीया जलाया प्रार्थना की। फिर अपनी टॉर्च ले निकल गई गली में। कुछ देर चलने के बाद उसने बलराज की साइकिल रास्ते में गिरी देखी। भगवान की फोटो टूट गई थी मोमबत्ती और काव्या की टाॅफियां वहीं बिखरी पड़ी थी। साइकिल के आसपास खून ही खून था।
दयमंती ने आसपास के लोगों से पूछा तो किसी ने बताया की बलराज काव्या को लेकर फौजी डॉक्टर के पास गया है उसके पैर में काफी चोट लगी है। वो दौड़ते हुए डॉक्टर के पास पहुंची।
बलराज के पापा भी तब तक ऑफिस से आ गए थे वह भी डॉक्टर के क्लीनिक आए। तब तक काव्या के पैर में पट्टी कर दी गई थी और टिटनेस का इंजेक्शन भी लगा दिया था।
डॉक्टर ने कहा.. रमल जी आपका बेटा बलराज समय पर बच्ची को मेरे पास ले आया और आपकी बिटिआ भी बहुत बहादुर है। बड़े आराम से इसने पट्टी बंधवाई और इंजैक्शन भी लगवा लिया। देरी होने से दिक्कत हो जाती खून काफी बह गया है। थोड़ा ध्यान रखियेगा बच्ची को जूस फल खिलाते रहियेगा। और हर शाम को मेरे पास लेते आइयेगा रोज पट्टी बदलनी होगी। पैर को धूल मिट्टी से बचाना होगा।
अब बलराज रोज शाम को पापा के साथ काव्या को क्लीनिक लेकर आता और उसकी पट्टी बदलवाता। उसके लिए अनार का जूस और सेब खरीद कर लगता। उसका बहुत ध्यान रखता।
महीने भर बाद उसका पैर तो बिल्कुल ठीक हो गया पर जिस जगह पैर में चोट लगी थी उस जगह का निशान रह गया।
भाईदूज पर बलराज ने काव्या को छोटी साईकिल उपहार स्वरूप दी और बोला आराम से चलाना फिर से पैर मत फसा लेना। काव्या बहुत खुश थी अब उसके पास भी अपनी साईकिल थी।
***
स्वरचित और मौलिक
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी
#लेखनी कहानी प्रतियोगिता
३.१२.
आर्या मिश्रा
05-Dec-2021 12:42 AM
Very nicr
Reply
Seema Priyadarshini sahay
04-Dec-2021 01:05 AM
बहुत खूबसूरत
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